Sri Rama Bhujangam
Sri Rama Bhujangam

विशुद्धं परं सच्चिदानन्दरूपं गुणाधारमाधारहीनं वरेण्यम् । महान्तं विभान्तं गुहान्तं गुणान्तं सुखान्तं स्वयं धाम रामं प्रपद्ये ॥ 1 ॥
मैं उस भगवान राम की शरण लेता हूँ—जो सर्वथा विशुद्ध हैं, जो सच्चिदानन्दरूप (सत्–चित्–आनन्द स्वरूप) हैं, जो गुणों का आधार हैं, पर स्वयं किसी आधार पर आश्रित नहीं, जो श्रेष्ठ और वरणीय हैं, जो महान, सबमें प्रकाशमान, हृदय की गुहा (गहराई) में स्थित और गुणों के पार हैं, जिनके चरणों में परम सुख की प्राप्ति होती है,जो स्वयं ही धाम (परम प्रकाश) हैं।
I worship that Rama, who is ever pure, Who is existence and fullness, Who is the support of gunas and himself does not have any support, Who is the greatest, Who cannot be divided, who is the end within himself, Who has countless gunas, Who is the ultimate pleasure, And who himself is the abode.

शिवं नित्यमेकं विभुं तारकाख्यं सुखाकारमाकारशून्यं सुमान्यम् । महेशं कलेशं सुरेशं परेशं नरेशं निरीशं महीशं प्रपद्ये ॥ 2 ॥
मैं उस भगवान शिव की शरण लेता हूँ, जो सदा शाश्वत, एकमात्र, सर्वव्यापी और तारक नाम से प्रसिद्ध हैं, जो परम आनन्दस्वरूप हैं परंतु स्वयं किसी आकार या रूप से बंधे नहीं हैं। वे देवताओं द्वारा पूज्यनीय हैं, समस्त लोकों के स्वामी महेश्वर हैं, जो दुःखों का नाश करने वाले और संसार के कष्टों से मुक्त कराने वाले हैं। वे देवताओं के ईश्वर, मनुष्यों के अधिपति, और समस्त जगत् के परमेश्वर हैं। वे ऐसे प्रभु हैं जो किसी पर आश्रित नहीं, स्वयंसिद्ध और सर्वाधार हैं। पृथ्वी सहित सम्पूर्ण विश्व जिन पर टिका है, ऐसे महेश्वर शिव को मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ और उनकी शरण ग्रहण करता हूँ।
I worship that Rama, who is the lord of this earth, Who is eternal, who is always one and all pervasive, Who is the way to cross the ocean of life, Who is in the form of sukha itself, Who does not have any form, Who is well respected, Who is the greatest god, Who is god of all arts, who is the lord of devas, Who is the lord of the ultimate, Who is the Isha of humans, And who is one who does not have any Lord.

यदावर्णयत्कर्णमूलेऽन्तकाले शिवो राम रामेति रामेति काश्याम् । तदेकं परं तारकब्रह्मरूपं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ 3 ॥
मैं उस परम तत्व की बार-बार उपासना करता हूँ, जो तारक-ब्रह्म स्वरूप है। जब प्रलय या मृत्यु का समय आता है और काशी नगरी में रहने वाला जीव अंतिम साँसें ले रहा होता है, तब स्वयं भगवान शिव उसके कान के पास जाकर “राम-राम, राम-राम” का नाम उच्चारण करते हैं। वही राम नाम वास्तव में तारक-मंत्र है, जो जीव को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर परम मोक्ष प्रदान करता है। इस श्लोक में कहा गया है कि शिव स्वयं भी मोक्ष के समय रामनाम का उपदेश देते हैं, क्योंकि राम ही परब्रह्म हैं और रामनाम ही वह अमोघ नौका है जो जीव को संसार-सागर से पार कराती है। अतः मैं उस एकमात्र परम तारक-ब्रह्म स्वरूप का निरंतर ध्यान और भजन करता हूँ।
When it is said that at the time of death in Kashi, Lord Shiva whisper in the ear,– Rama, Rama, Rama To that one ultimate form of Taraka Brahma, I worship you. I worship you. I worship you. I worship you.

महारत्नपीठे शुभे कल्पमूले सुखासीनमादित्यकोटिप्रकाशम् । सदा जानकी लक्ष्मणोपेतमेकंसदा रामचन्द्रं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ 4 ॥
मैं उस भगवान श्रीराम का बार-बार भजन करता हूँ, जो दिव्य महारत्नों से निर्मित सिंहासन पर सुशोभित रहते हैं, कल्पवृक्ष की छाया में सुखपूर्वक विराजमान हैं और जिनका तेज़ करोड़ों सूर्य के प्रकाश के समान जगमगाता है। वे कभी अकेले नहीं हैं—सदैव उनके साथ माता सीता जी विराजती हैं और आज्ञाकारी भ्राता लक्ष्मणजी सेवामें उपस्थित रहते हैं। यह दृश्य भक्त के हृदय में परम आनन्द और शांति का संचार करता है, क्योंकि उसमें ईश्वर का शाश्वत दिव्य ऐश्वर्य, करुणा और भक्तवत्सलता प्रतिबिंबित होती है। श्रीरामचन्द्र का स्मरण करने से साधक को यह अनुभव होता है कि वे न केवल त्रेतायुग के अयोध्यापति हैं बल्कि सनातन काल से अनादि-अनंत परमात्मा के रूप में महारत्न-मंडित पीठ पर आसीन हैं और समस्त जगत् को प्रकाशमान कर रहे हैं। अतः मैं उन्हीं श्रीरामचन्द्रजी का बार-बार ध्यान, जप और भजन करता हूँ।
I always worship and worship that Ramachandra, Who sits on the bejeweled throne, Below the wish giving tree, sitting comfortably, With the luster of billions of suns, Always served by Sita and Lakshmana.

क्वणद्रत्नमञ्जीरपादारविन्दं लसन्मेखलाचारुपीताम्बराढ्यम् । महारत्नहारोल्लसत्कौस्तुभाङ्गं नदच्चञ्चरीमञ्जरीलोलमालम् ॥ 5 ॥
मैं भगवान श्रीराम के उस मनोहर स्वरूप का ध्यान करता हूँ जिनके चरण-कमल रत्नजटित मंजीरों की मधुर झंकार से गूँजते हैं। उनके शरीर पर सुनहरी मेखला (कमरबंध) और पीताम्बर अलंकारित शोभा बढ़ाते हैं। उनके वक्षस्थल पर दिव्य महारत्नों का हार लटक रहा है और उस पर कौस्तुभ मणि की आभा अद्भुत रूप से चमक रही है। गले में सुगंधित पुष्पों की माला है, जिस पर भौंरों की टोलियाँ गुंजार कर रही हैं, मानो स्वयं प्रकृति भी उनके सौंदर्य का रसास्वादन कर रही हो। इस श्लोक में श्रीराम के ऐश्वर्य और सौम्य रूप का अत्यंत सुंदर चित्रण है—जहाँ उनकी दिव्यता और भव्यता दोनों ही झलकती हैं। ऐसे श्रीराम का ध्यान करने मात्र से हृदय में भक्ति, शांति और आनंद की धारा प्रवाहित होने लगती है।
I worship that Ramachandra, Whose lotus feet are adorned by jingling anklets, Who adorns himself with red silk tied by golden belt, Who wears garlands of great gems and Koustubha, And also flower garlands attracted by bees.

लसच्चन्द्रिकास्मेरशोणाधराभं समुद्यत्पतङ्गेन्दुकोटिप्रकाशम् । नमद्ब्रह्मरुद्रादिकोटीररत्न स्फुरत्कान्तिनीराजनाराधिताङ्घ्रिम् ॥ 6 ॥
मैं उन भगवान श्रीराम को नमन करता हूँ, जिनके अधर (ओष्ठ) रक्तवर्णी होकर खिले हुए चन्द्रमा की चाँदनी की भाँति शोभायमान हैं। उनका तेज़ उदित होते हुए सूर्य और असंख्य चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी कहीं अधिक ज्योतिर्मय है। उनके चरणों की पूजा स्वयं ब्रह्मा, रुद्र और असंख्य देवगण करते हैं। जब देवता अपने मस्तक के मुकुटों में जड़े रत्नों को झुकाकर उनकी आराधना करते हैं, तब उन रत्नों से निकलने वाली झिलमिलाती प्रभा एक दिव्य आरती का रूप ले लेती है। यह दृश्य दर्शाता है कि भगवान श्रीराम केवल पृथ्वी के नायक नहीं, बल्कि समस्त लोकों के स्वामी और देवताओं द्वारा पूज्य परब्रह्म हैं। उनका स्मरण करने से साधक के हृदय में श्रद्धा, भक्ति और दिव्य तेज़ का अनुभव होता है।
I worship that Ramachandra, Whose smile with reddish lips reminds of the pretty moon, Who has luster of thousands of moons and suns, Whose feet are worshipped by the light of billions Of gems on the crowns of Brahma and Rudra, Who bend and worship at his feet.


न्स्वचिन्मुद्रया भद्रया बोधयन्तम् । भजेऽहं भजेऽहं सदा रामचन्द्रं त्वदन्यं न मन्ये न मन्ये न मन्ये ॥ 7 ॥
I always worship and worship that Ramachandra, Who is surrounded by the saluting Hanuman and others, And who teaches eternal knowledge by the chinmudra symbol in his hands, And say, Other than you, I do not think of any one, I do not think of any one, I do not think of any one. The chinmudra symbol is when the forefinger which stands for the ahankara, ego is freed from the hold of the three fingers and is brought to meet the tip of the thumb forming a circle, which has no beginning or end, standing for infinity. The ahankara in the form of the forefinger usually is with the three other fingers of the hand standing for sattva, rajas, tamas or the three states of experience – waking, dream and deep sleep and has built up many identities hoping to gain the limitless.

यदा मत्समीपं कृतान्तः समेत्प्र चण्डप्रकोपैर्भटैर्भीषयेन्माम् । तदाविष्करोषि त्वदीयं स्वरूपं सदापत्प्रणाशं सकोदण्डबाणम् ॥ 8 ॥
मैं उन भगवान श्रीराम की शरण लेता हूँ, जिनका स्वरूप मृत्यु के समय भी अपने भक्तों के लिए रक्षा कवच बन जाता है। जब काल (यमराज) अपने भयानक और क्रोधपूर्ण दूतों के साथ मेरे समीप आकर मुझे भयभीत करेगा, तब आप ही प्रकट होकर अपने धनुष और बाण सहित वीर स्वरूप से उन मृत्यु-दूतों का नाश करेंगे। इस श्लोक में यह स्पष्ट किया गया है कि प्रभु राम केवल सांसारिक जीवन के ही नहीं, बल्कि मृत्यु के पार के भी रक्षक हैं। वे भक्तों को इस लोक के संकटों से भी बचाते हैं और अंत समय में भी अपने करुणामय एवं शौर्यपूर्ण स्वरूप से उन्हें भयमुक्त कर देते हैं। इस प्रकार श्रीराम का स्मरण करना साधक को यह आश्वासन देता है कि चाहे मृत्यु जैसी भयावह परिस्थिति ही क्यों न आ जाए, प्रभु अपने भक्तों को अकेला नहीं छोड़ते और स्वयं संहारक रूप में प्रकट होकर उन्हें मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
When the God of death comes before me, And threatens me with his powerful angry soldiers, causing me fear, Then please bring before me your form armed with Kodanda bow, Which will remove all fear of dangers from me.
A note on the Kodanda or Shaaranga bow which is notable because it has been used by 3 avataaras of Vishnu: Parashurama, Rama, and Krishna. The bow is offered to Sri Rama by Parashurama, the previous incarnation of Vishnu. In the Ramayana, Parashurama, the Brahmin warrior who upholds Dharma by destroying the arrogant Kshatriyas regales the story of the Kodanda bow.
Vishvakarma had created the bows of Pinaka and Sharanga to settle the question of the superiority of the Vishnu and Shiva. Vishnu is victorious, and Shiva presents his bow to the king of Mithila, Janaka. Vishnu’s bow is passed down to Richika, who presented it to Jamadagni, Parashurama’s father, the latter claiming it after his father’s assassination.
Parashurama challenges Rama to fight him if the latter is able to string the bow. When the prince achieves this, the warrior admits defeat and retires to his abode.

निजे मानसे मन्दिरे सन्निधेहि प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचन्द्र । ससौमित्रिणा कैकयीनन्दनेन स्वशक्त्यानुभक्त्या च संसेव्यमान ॥ 9 ॥
हे प्रभु श्रीरामचन्द्र! कृपा करके मेरे अपने हृदय रूपी मंदिर में सदा विराजमान हों। आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे प्रभो, और मेरी भक्ति को स्वीकार करें। आप सदैव सौमित्रि (लक्ष्मणजी) तथा कैकेयी नंदन भरतजी के साथ अपनी शक्ति (माता सीता) और अनन्य भक्त शत्रुघ्न द्वारा सेवा-पूजन पाकर आनंदित रहते हैं। जिस प्रकार अयोध्या और वैकुण्ठ में आपकी सेवा निरंतर होती है, उसी प्रकार मेरे अंतःकरण रूपी देवालय में भी आप भक्तिभाव से पूजे जाएँ। यह श्लोक वास्तव में साधक की गहरी प्रार्थना है कि श्रीराम बाहर के मंदिर में ही नहीं, बल्कि अपने अंतर्मन में भी सजीव उपस्थिति दर्ज करें और साधक को हर समय अपनी कृपा से आलोकित करें।
Please come in my mind and be present in that temple, Be pleased and pleased, Oh Ramachandra, Served by Bharata, Lakshmana and Shatrughna, And help this devotee who serves you with bhakti, by your power.
Bharata was Kaikeyi’s son while Lakshmana and Shatrughna were sons of Sumitra. All brothers loved and served Sri Rama in their own way.
Bharata became the king designate after Sri Rama ‘s exile but went to Rama and asked him to return to Ayodhya. Since Rama refused, he carried back Sri Rama’s padukas, placed them on the throne and ruled Ayodhya from Nandigram, a village on the outskirts of Ayodhya. Bharata was an excellent leader, acting as the very embodiment of dharma.
Although Bharata was the king it was Shatrughna who undertook of the administration of the whole kingdom of Ayodhya. Shatrughna was the only solace for the three queen mothers during the absence of Rama, Lakshmana, and Bharata from Ayodhya.


स्वभक्ताग्रगण्यैः कपीशैर्महीशै- -रनीकैरनेकैश्च राम प्रसीद । नमस्ते नमोऽस्त्वीश राम प्रसीद प्रशाधि प्रशाधि प्रकाशं प्रभो माम् ॥ 10 ॥
हे रामचन्द्रजी! आप उन भक्तों से सदा घिरे रहते हैं जो आपके परमप्रिय हैं—वानरराज सुग्रीव, वानरवीर हनुमान, नल-नील और अन्य कपि-सेनापति; साथ ही साथ महाबली विभीषण और अनेकानेक राजाओं की सेनाएँ आपके चरणों में समर्पित रहती हैं। हे ईश्वर! मैं बार-बार आपको नमस्कार करता हूँ, नमस्ते, नमोऽस्तु कहकर अपनी दीन प्रार्थना अर्पित करता हूँ। कृपया प्रसन्न होइए, हे प्रभो, और मुझ पर प्रकाशमान होकर मेरी अज्ञानता के अंधकार को दूर कीजिए। आप ही मेरे जीवन के मार्गदर्शक हैं, आप ही सच्चे शासक हैं। अतः मेरी आत्मा का संचालन कीजिए, मुझे धर्म, ज्ञान और भक्ति के प्रकाश से आलोकित कीजिए, और मेरी वृत्तियों को शुद्ध कर दीजिए। यह श्लोक साधक की पूर्ण आत्मसमर्पण भावना को प्रकट करता है, जिसमें वह प्रभु से केवल यही निवेदन करता है—“प्रशाधि प्रभो माम्”—अर्थात्, हे प्रभु! मुझे अपना बना लीजिए और मेरे जीवन को दिव्य मार्ग पर प्रशासित कीजिए।
Be pleased with me, Oh Ramachandra, Who is surrounded by great devotees, great monkey lords, kings and chieftains, I worship you my Isha Rama, be pleased with me, Bless me, bless me with light, Oh Lord.

त्वमेवासि दैवं परं मे यदेकं सुचैतन्यमेतत्त्वदन्यं न मन्ये । यतोऽभूदमेयं वियद्वायुतेजो- जलोर्व्यादिकार्यं चरं चाचरं च ॥ 11 ॥
हे प्रभु रामचन्द्र! आप ही मेरे लिए एकमात्र परब्रह्म, परमदैव और सर्वोच्च सत्ता हैं। आप ही सच्चिदानन्द स्वरूप शुद्ध चैतन्य हैं। आपके अतिरिक्त मैं किसी अन्य को सत्य परमात्मा नहीं मानता। आपसे ही यह समस्त दृश्य और अदृश्य जगत उत्पन्न हुआ है। आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी जैसे पंचमहाभूत तथा उनसे बने हुए चर (चलायमान प्राणी) और अचर (स्थावर जगत—पर्वत, वृक्ष आदि) सभी आपके ही कार्य और स्वरूप हैं। इस श्लोक में साधक पूर्ण श्रद्धा से यह उद्घोष करता है कि जगत के विविध नाम-रूपों के पीछे जो एक अद्वितीय तत्त्व है, वही श्रीराम हैं। अतः उनका भजन करना ही परमभक्ति और परमज्ञान है।
You alone are Daivam, the ultimate for me, I do not consider any other power except you, As all the Bhutas like Space, Air, Fire, Water, Earth and its effects which are mobile and immobile have come from you.

नमः सच्चिदानन्दरूपाय तस्मै नमो देवदेवाय रामाय तुभ्यम् । नमो जानकीजीवितेशाय तुभ्यं नमः पुण्डरीकायताक्षाय तुभ्यम् ॥ 12 ॥
हे प्रभु रामचन्द्र! आपको मेरा बारंबार प्रणाम है। आप ही सच्चिदानन्द स्वरूप हैं—सत्, चित् और आनन्द के अविनाशी स्वरूप में स्थित परमब्रह्म। हे देवों के देव! आपको मेरा नमस्कार है। आप ही जानकीजी (माता सीता) के जीवन-प्राण हैं, उनके प्रियतम और अनन्य आश्रय हैं। आपको मेरा प्रणाम है। आपके नेत्र कमल की भाँति मनोहर और विशाल हैं, जिनकी करुणामयी दृष्टि से समस्त जीवों को सुख, शांति और सुरक्षा प्राप्त होती है। प्रभु! मैं आपके चरणों में पुनः-पुनः वंदन करता हूँ। इस श्लोक में साधक अपने हृदय की गहराई से यह प्रकट करता है कि राम केवल एक ऐतिहासिक पुरुष नहीं, बल्कि स्वयं परब्रह्म, देवाधिदेव और सच्चिदानन्द स्वरूप हैं। उनका स्मरण करने से जीवन धन्य हो जाता है और आत्मा मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होती है।
Namah to the One who is of the nature of Existence, Consciousness and Fullness, Namah to Him who is the Lord of all Devas Rama, Namah to Him, who is the consort of Janaki, Namah to Him, who bears a lotus on his belly.(referring to the Vishnu form)

नमो भक्तियुक्तानुरक्ताय तुभ्यं नमः पुण्यपुञ्जैकलभ्याय तुभ्यम् । नमो वेदवेद्याय चाद्याय पुंसे नमः सुन्दरायेन्दिरावल्लभाय ॥ 13 ॥
हे प्रभु श्रीराम! आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। आप उन भक्तों के प्रति सदैव स्नेहमय और अनन्य अनुराग से युक्त रहते हैं, जो आपकी भक्ति में लीन होकर आपका स्मरण करते हैं। हे पुण्य के अक्षय भण्डार! केवल वही आपके चरणों की शरण पा सकते हैं जो असंख्य जन्मों के पुण्यसंचय से ही यह दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त करते हैं। आपको प्रणाम है, जो वेदों द्वारा जाने और वेदों में प्रतिपादित परब्रह्म हैं। आप ही आदि पुरुष, सनातन पुरुषोत्तम और समस्त सृष्टि के कारण हैं। आपको बारंबार प्रणाम है, जो सौंदर्य के सागर और लक्ष्मी (सीताजी) के प्रियतम हैं। इस श्लोक में साधक अपने हृदय से यह भाव प्रकट करता है कि श्रीराम केवल भक्तों के रक्षक ही नहीं, बल्कि वेदों के गूढ़ार्थ हैं, परम सत्य हैं और साथ ही अपने अनन्त सौंदर्य व माधुर्य से जगत को मोहित करने वाले भी हैं।
Namah to Him, who loves his devotees, Namah to Him, who can be seen only as a result of good deeds, Namah to the God of Vedas (the one to be known) and the first being. Namah to the handsome one who is the consort of Sita.

नमो विश्वकर्त्रे नमो विश्वहर्त्रे नमो विश्वभोक्त्रे नमो विश्वमात्रे । नमो विश्वनेत्रे नमो विश्वजेत्रे नमो विश्वपित्रे नमो विश्वमात्रे ॥ 14 ॥
हे प्रभु श्रीराम! आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। आप ही इस विश्व के स्रष्टा (कर्त्ता) हैं, आप ही इसके संहारक हैं, आप ही सम्पूर्ण जगत् के भोक्ता अर्थात कर्मफल देने वाले और उसका अनुभव करने वाले हैं। आप ही विश्व की माता हैं, जो करुणा और पालन से सभी जीवों की रक्षा करती हैं। आपको प्रणाम है, जो इस विश्व के नेत्र हैं—अर्थात समस्त जगत् को देखने, जानने और संचालित करने वाली चेतना आप ही हैं। आप ही जेतृ हैं—संसार और मायाजाल पर विजय प्राप्त कराने वाले। आप ही इस विश्व के पिता हैं, जो आधार, पालनकर्ता और रक्षक हैं। और साथ ही आप ही विश्व की माता भी हैं, जो असीम करुणा से सभी को अपनी गोद में स्थान देती हैं। इस श्लोक में प्रभु राम को संपूर्ण सृष्टि का मूल कारण, पालनकर्ता, संहारक, आधार और माता-पिता रूप में स्वीकार किया गया है। भक्त कहता है कि इस अनंत ब्रह्मांड के हर रूप में राम ही व्याप्त हैं और उसी एक राम को मैं नमस्कार करता हूँ।
Namah to him who creates the universe, Namah to him who destroys the universe, Namah to him who experiences the universe, Namah to him, who rules over the universe, Namah to him, who is the eye of the universe, Namah to him, who wins over the universe, Namah to him, who is father of the universe, And Namah to him, who is the mother of the universe.

नमस्ते नमस्ते समस्तप्रपञ्च- -प्रभोगप्रयोगप्रमाणप्रवीण । मदीयं मनस्त्वत्पदद्वन्द्वसेवां विधातुं प्रवृत्तं सुचैतन्यसिद्ध्यै ॥ 15 ॥
हे प्रभु श्रीराम! आपको मेरा बार-बार नमस्कार है। आप सम्पूर्ण प्रपंच (सृष्टि) के अनुभव, प्रयोग और प्रमाण के तत्त्व में पारंगत, सबके ज्ञाता और सर्वज्ञ हैं। समस्त जगत का रहस्य और सत्य आपके ही ज्ञान से प्रकाशित है। हे प्रभु! मेरा मन अब आपके चरण-कमलों की सेवा में प्रवृत्त हो चुका है। यह मन संसार के भोग और माया में न फँसे, बल्कि आपके पवित्र चरणों की सेवा में ही निरंतर लगा रहे। ऐसा करने से ही मुझे शुद्ध चैतन्य की सिद्धि प्राप्त होगी और आत्मा का सच्चा कल्याण होगा। इस श्लोक में भक्त अपने भीतर की चंचल वृत्ति को वश में करने और उसे रामभक्ति में स्थिर करने की प्रार्थना करता है। यह भाव स्पष्ट करता है कि मोक्ष और चैतन्य की प्राप्ति केवल प्रभु के चरणों की सेवा और अनन्य भक्ति से ही संभव है।
Namah and Namah to the expert in the working and control of the entire world, My mind is engaged in the service of your feet, you who sustain all, With the purpose of attaining the eternal truth.


शिलापि त्वदङ्घ्रिक्षमासङ्गिरेणु प्रसादाद्धि चैतन्यमाधत्त राम । नरस्त्वत्पदद्वन्द्वसेवाविधाना- -त्सुचैतन्यमेतीति किं चित्रमत्र ॥ 16 ॥
हे राम! आपके चरणों की धूल का ऐसा अद्भुत प्रभाव है कि वह साधारण शिला (पत्थर) तक को जीवन और चेतना प्रदान कर देती है। अहल्या का उद्धार इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है—जो शिला रूप में शापग्रस्त थीं, वे आपके चरण-स्पर्श से पुनः चेतन होकर परम पावनी बन गईं। जब आपके चरणों की रज से पत्थर तक में चैतन्य जागृत हो सकता है, तो इसमें क्या आश्चर्य कि मनुष्य यदि आपके पवित्र चरणों की सेवा और भक्ति में निरंतर लगा रहे, तो वह परम शुद्ध चैतन्य को प्राप्त कर ले? यह श्लोक भक्त को विश्वास दिलाता है कि प्रभु की भक्ति और चरण-सेवा से ही जड़ चेतन बनता है, अज्ञान मिटता है और आत्मा शुद्ध ज्ञान-स्वरूप को प्राप्त करती है।
Even an ordinary stone, getting the dust of your feet, Oh Rama, got her life back, And so by saluting and serving your two feet, If people get liberated what is strange about it? This refers to Ahalya, a very beautiful woman created by Brahmaji and married to Rishi Gautama. After Indra took the form of Gautama and seduced her, Rishi Gautama was enraged and pronounced a curse on her that his wife Ahalya would become invisible without food, live on air, unseen by all beings, just like dust. She will regain her body only after Rama visits the hermitage and she serves him.

पवित्रं चरित्रं विचित्रं त्वदीयं नरा ये स्मरन्त्यन्वहं रामचन्द्र । भवन्तं भवान्तं भरन्तं भजन्तो- लभन्ते कृतान्तं न पश्यन्त्यतोऽन्ते ॥ 17 ॥
हे प्रभु रामचन्द्र! आपका चरित्र पवित्र है और साथ ही अति विचित्र (अद्भुत, विलक्षण) भी है। जो मनुष्य आपके इस पावन चरित्र का प्रतिदिन स्मरण करते हैं, वे जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर आपके अनन्त कृपा के पात्र बन जाते हैं। हे प्रभु! आपके दिव्य चरित्र का निरंतर भजन और ध्यान करने वाले भक्त अंतकाल में मृत्यु के भय से मुक्त रहते हैं। वास्तव में, जो आपकी कथा, लीलाओं और चरित्र का गान करते हैं, वे “कृतान्त” अर्थात् यमराज और मृत्यु को भी अंत में नहीं देखते, क्योंकि आप ही उनके जीवन के रक्षक और तारक बन जाते हैं। इस श्लोक में स्पष्ट है कि श्रीरामचरित का श्रवण और कीर्तन ही साधक के लिए अमृत समान है, जो उसे संसार के बंधन से मुक्त कर देता है।
Ramachandra, those men, who remember, Your sacred story which is strange, And those who chant your names, You, who is the destroyer of a sorrowful life, Obtain at the end what they desire and do not see the God of death.

स पुण्यः स गण्यः शरण्यो ममायं नरो वेद यो देवचूडामणिं त्वाम् । सदाकारमेकं चिदानन्दरूपं मनोवागगम्यं परं धाम राम ॥ 18 ॥
हे राम! वही मनुष्य वास्तव में पुण्यवान और धन्य है, वही इस संसार में गणनीय और महान है, जो आपको अपना आश्रय मानता है। आप ही देवताओं के चूड़ामणि (मुकुटमणि, श्रेष्ठतम) हैं, जिनकी महिमा का गान वेद करते हैं। आप ही शाश्वत, एकरस, सतत विद्यमान और सच्चिदानन्द स्वरूप परमात्मा हैं। आपका स्वरूप न मन द्वारा पूरी तरह ग्रहण किया जा सकता है और न ही वाणी द्वारा व्यक्त—क्योंकि आप मनोवागगोचर से परे हैं। आप ही वह परम धाम हैं, जहाँ जाकर साधक को शाश्वत शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस श्लोक में भक्त यह प्रकट करता है कि संसार में वही वास्तव में सौभाग्यशाली है, जो राम के चरणों का शरणागत है, क्योंकि वही परब्रह्म स्वरूप राम मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य और गंतव्य हैं।
You who are in the form of blessings, the only one who can be counted, That man who knows that you are the greatest of devas has surrendered to you, Who has a real form and yet whose nature is Chidananda, eternal fullness, Who is beyond mind and words, You who is Rama, the ultimate abode,

प्रचण्डप्रतापप्रभावाभिभूत- -प्रभूतारिवीर प्रभो रामचन्द्र । बलं ते कथं वर्ण्यतेऽतीव बाल्ये- यतोऽखण्डि चण्डीशकोदण्डदण्डम् ॥ 19 ॥
हे प्रभु रामचन्द्र! आप प्रचण्ड प्रताप और अद्वितीय प्रभाव से युक्त हैं, जिनके आगे असंख्य शत्रु-वीर भी अभिभूत हो जाते हैं। आपके सामर्थ्य का वर्णन करना कठिन है, क्योंकि आपका पराक्रम अपरिमेय और अलौकिक है। विशेषकर, आपके बाल्यकाल में ही यह स्पष्ट हो गया था जब आपने सहज खेल के समान शिवजी के महान धनुष (पिनाक या कोदण्ड) को एक ही क्षण में उठाकर तोड़ डाला। वह धनुष जिसे त्रैलोक्य में कोई भी देवता या असुर हिला भी नहीं सकता था, उसे आपने बालक की भाँति सहजता से खण्डित कर दिया। यह प्रसंग यह सिद्ध करता है कि आपका बल और सामर्थ्य अनंत, अवर्णनीय और ईश्वरतुल्य है। इस श्लोक में साधक प्रभु के दिव्य सामर्थ्य का स्मरण कर श्रद्धा से नतमस्तक होता है।
Lord Ramachandra, who is the greatest, Who is very famous all over, And who is the killer of his enemies, There is no need to describe your prowess, For even at a very young child’s age, You broke the great bow of Lord Shiva.

दशग्रीवमुग्रं सपुत्रं समित्रं सरिद्दुर्गमध्यस्थरक्षोगणेशम् । भवन्तं विना राम वीरो नरो वा- ऽसुरो वाऽमरो वा जयेत्कस्त्रिलोक्याम् ॥ 20 ॥
हे प्रभु रामचन्द्र! रावण दस शीशों वाला अत्यंत उग्र और पराक्रमी राक्षस था। उसके साथ उसके पुत्र, भाई और असंख्य राक्षस सेनाएँ भी थीं, जो समुद्र से घिरे लंका जैसे दुर्गम किले में रहते थे। उस बलशाली राक्षस को न कोई मनुष्य, न कोई असुर और न ही कोई देवता तीनों लोकों में जीत सका। लेकिन, हे राम! आपके बिना कौन उसे पराजित कर सकता था? वास्तव में, केवल आपके ही सामर्थ्य और वीरता से उसका नाश संभव हुआ। इस श्लोक में भक्त यह स्वीकार करता है कि जगत् में चाहे कितनी भी शक्ति क्यों न हो, अधर्म पर विजय केवल भगवान श्रीराम की कृपा और सामर्थ्य से ही संभव है। राम ही धर्म के रक्षक और अधर्म के संहारक हैं।
Are there either heroes or asuras or devas, Capable of killing the ten headed one along with his sons, And friends in a place surrounded by the sea, Except you Oh Lord Rama?


सदा राम रामेति रामामृतं ते सदाराममानन्दनिष्यन्दकन्दम् । पिबन्तं नमन्तं सुदन्तं हसन्तं हनूमन्तमन्तर्भजे तं नितान्तम् ॥ 21 ॥
हनुमानजी सदा “राम, राम” का अमृत समान नाम जपते रहते हैं। यह रामनाम उनके लिए अखंड आनन्द का स्रोत है, जो निरंतर रसधारा की तरह बहता है। वे निरंतर प्रभु राम के चरणों में प्रणाम करते हैं, प्रसन्नचित होकर मधुर हास्य करते हैं और अपनी विनम्रता तथा भक्ति से सबको मोहित करते हैं। उनके दाँत मोती जैसे सुंदर और श्वेत हैं, जो उनके मधुर हास्य से दीप्तमान रहते हैं। ऐसा भक्त शिरोमणि हनुमान, जो रामनामामृत में ही लीन रहता है और रामचरणों का ध्यान करता है, मैं अपने अंतःकरण में सदा-सर्वदा आराधना करता हूँ। इस श्लोक में रामनाम और हनुमानजी की अनन्य भक्ति दोनों का महिमामंडन है।
Always chanting Rama, Rama Who is ever delightful and a tide of real happiness, Drinking always, the nectar of the name Rama Saluting you and having a smiling face Is Hanuman, And I pray to him always and always.

सदा राम रामेति रामामृतं ते सदाराममानन्दनिष्यन्दकन्दम् । पिबन्नन्वहं नन्वहं नैव मृत्यो र्बिभेमि प्रसादादसादात्तवैव ॥ 22 ॥
हे प्रभु राम! आपका “राम-राम” नाम अमृत के समान है, जो अनन्त आनंद का मूल स्रोत है। मैं प्रतिदिन, निरंतर इस नाम-रस का पान करता हूँ। इस रामनाम का सतत् जप और स्मरण करते हुए मुझे मृत्यु का कोई भय नहीं रहता। क्योंकि हे प्रभु! आपके अनुग्रह से मुझे यह अमृत तुल्य नाम प्राप्त हुआ है। साधक कहता है कि रामनाम ही अमृत है, और इसे पीने वाला मृत्यु से पार हो जाता है। इस प्रकार, रामनाम-जप साधक को निर्भय और अमरत्व का वरदान देता है।
I who am always chanting Rama, Rama Drinking daily, the nectar of the name Rama I am not afraid of death, Due to your uninterrupted grace.

असीतासमेतैरकोदण्डभूषै- -रसौमित्रिवन्द्यैरचण्डप्रतापैः । अलङ्केशकालैरसुग्रीवमित्रै- -ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ 23 ॥
हे प्रभु राम! आप अपने हाथ में अद्भुत कोदण्ड धनुष धारण किए रहते हैं और आपके साथ धर्मनिष्ठ, पराक्रमी तथा आपकी सेवा में तत्पर भक्तगण सदा उपस्थित रहते हैं। लक्ष्मणजी, जो आपके छोटे भाई और अनन्य सहचर हैं, आपकी स्तुति करते रहते हैं। आपका पराक्रम कभी भी मंद नहीं पड़ता, वह सदैव प्रचण्ड और दुष्टों का दमन करने वाला है। आप सुग्रीव जैसे मित्रों के साथ तथा रावण जैसे अधर्मियों के संहारक रूप में प्रसिद्ध हैं। हे राम! आप ही हमारे आराध्य देव हैं, हमें अन्य देवताओं की आवश्यकता नहीं। इस श्लोक में भक्त कहता है कि श्रीराम अपने भक्त-सेवकों और मित्रों के साथ मिलकर धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करते हैं, और वही हमारे लिए सर्वोच्च देवता हैं।
No other God is required by us except Rama, Who is always with Sita, Who wears the Kodanda bow as ornament, Who is being worshipped by Lakshmana, Who is well known as a great hero, Who is the God of death to the king of Lanka, And who is a friend of Sugreeva.

अवीरासनस्थैरचिन्मुद्रिकाढ्यै–रभक्ताञ्जनेयादितत्त्वप्रकाशैः ।अमन्दारमूलैरमन्दारमालै–ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ 24 ॥
हे प्रभु राम! आपके भक्त, जो वीरासन में स्थित होकर ध्यानमग्न रहते हैं, जिनके हाथों में चिन्मुद्रा की शोभा होती है और जो सदा आपकी भक्ति में रत रहते हैं—वे ही आपके तत्त्व को प्रकट करने वाले हैं। विशेषकर अंजनेय (हनुमान) जैसे महाभक्त, जो निरंतर आपके दिव्य स्वरूप और तत्त्व का प्रचार करते हैं, वे संसार के लिए प्रकाशपुंज हैं। वे अमन्दार (कल्पवृक्ष) के समान हैं, जो सदैव छाया और शांति देते हैं, और उनकी भक्ति-सुगंध मंदार पुष्पों की माला की तरह सदा शोभा बढ़ाती है। हे राम! ऐसे आपके नाम से विख्यात भक्त ही हमारे लिए पर्याप्त देवता हैं; हमें अन्य किसी देवता की आराधना की आवश्यकता नहीं। इस श्लोक में यह भाव स्पष्ट होता है कि श्रीराम और उनके अनन्य भक्त ही साधक के लिए सच्चे आराध्य देव हैं।
Who is sitting on the throne of heroes, Who shows the symbol of chinmudra, Who reveals the reality to the devotee Anjaneya, Hanuman and others Who sits on the roots of Mandara tree, And who wears the garland of mandara flowers. No other God is required by us except Rama, For the journey of Devotion, we dwell with bhakti on his form and glories, how he pervades all forms and also his limitless nature. None of these are different from each other.

असिन्धुप्रकोपैरवन्द्यप्रतापै–रबन्धुप्रयाणैरमन्दस्मिताढ्यैः । अदण्डप्रवासैरखण्डप्रबोधै- -ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ 25 ॥
हे प्रभु राम! आपके भक्त, जिनका प्रकोप समुद्र के उफान के समान प्रचण्ड है, जिनका पराक्रम अजेय और अनुपम है, जिनकी मित्रता सदा धर्मपरायणों के साथ होती है और जिनकी यात्राएँ पवित्र कार्यों के लिए ही होती हैं—वे वास्तव में आपके यश को बढ़ाने वाले हैं। उनके मुखमण्डल पर सदैव मधुर स्मित की आभा रहती है, वे दण्डरहित अर्थात अहिंसामय जीवन जीते हैं, परंतु उनके भीतर का ज्ञान अखण्ड और प्रबुद्ध है। ऐसे भक्त, जो आपके नाम से विख्यात हैं, वही हमारे लिए पर्याप्त देवता हैं। हमें अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं। इस श्लोक में यह भाव है कि श्रीराम के अनन्य भक्त ही उनके स्वरूप के प्रतिबिंब हैं, और उनके आश्रय से साधक को ज्ञान, बल और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Who got very angry with the ocean, Who is sufficiently famous as to be worshipd, Who travelled along with friends, Who wears a pleasant smile, Who lived in Danda forest, And who taught the vast knowledge. No other God is required by us except Rama,

हरे राम सीतापते रावणारे खरारे मुरारेऽसुरारे परेति । लपन्तं नयन्तं सदाकालमेवं समालोकयालोकयाशेषबन्धो ॥ 26 ॥
हे प्रभु राम! आप ही हरे (पापों का हरण करने वाले), सीतापति (माँ सीता के प्रिय पति), रावणारे (रावण के संहारक), खरारे (खर-दूषण के विनाशक), मुरारे (मुर दैत्य के हन्ता), असुरारे (असुरों के शत्रु) और परे (सर्वोच्च परब्रह्म) हैं। आपके भक्त निरंतर इन पवित्र नामों का उच्चारण करते रहते हैं और आपका संकीर्तन करते हैं। ऐसे संकीर्तन में रमे हुए साधक अपने जीवन की हर घड़ी आपको स्मरण करते हैं। हे प्रभु! आप उन भक्तों पर सदा अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें और उनकी समस्त बन्धनों से मुक्ति कर उन्हें अपने दिव्य धाम की ओर ले चलें। इस श्लोक में यह भाव है कि राम के नामों का जप और संकीर्तन ही जीव को संसार के बंधनों से मुक्त कर, मोक्ष तक पहुँचा देता है।
Oh Hari, consort of Sita, the enemy of Ravana, The Killer of Khara, Mura and the Killer of Asuras Please cast your graceful look on me, Who always spends the time by chanting, Oh Lord who is the relation of the entire world, When Hari is being called, he is referred to as Hare. Hare means take away what is anartha. Here Shankaracharya beautifully says हरे राम which is a part of the mahamantra. It also refers to Vishnu as Hari.

नमस्ते सुमित्रासुपुत्राभिवन्द्य नमस्ते सदा कैकयीनन्दनेड्य । नमस्ते सदा वानराधीशवन्द्य नमस्ते नमस्ते सदा रामचन्द्र ॥ 27 ॥
हे प्रभु रामचन्द्र! आपको बार-बार प्रणाम है। आप वे हैं जिन्हें सुमित्रानन्दन लक्ष्मण सदा आदरपूर्वक वंदन करते हैं। आपको प्रणाम है, जिन्हें भरत, कैकयीपुत्र, अपने जीवन का आराध्य मानते हैं। आपको प्रणाम है, जिन्हें वानरों के अधीश्वर—सुग्रीव और अन्य वानरराज—सदा श्रद्धा से वंदन करते हैं। आपको बारंबार प्रणाम है, हे प्रभु, क्योंकि आप सभी के लिए सुलभ, सर्वमान्य और सर्वपूज्य हैं। इस श्लोक में भक्त यह भाव प्रकट करता है कि रामचन्द्रजी केवल देवताओं के ही नहीं, बल्कि भाई, मित्र और भक्तों के लिए भी सदा पूजनीय और वंदनीय हैं।
Namah to him who is venerated by son of Sumitra Namah always to him who is respected by son of Kaikeyi(Bharata) Namah always to him who is the friend of king of monkeys, Namah and Namah always to Bhagavan Ramachandra.

प्रसीद प्रसीद प्रचण्डप्रताप प्रसीद प्रसीद प्रचण्डारिकाल । प्रसीद प्रसीद प्रपन्नानुकम्पि- न्प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचन्द्र ॥ 28 ॥
हे प्रभु रामचन्द्र! आप प्रचण्ड प्रतापी हैं, आपके शौर्य के आगे शत्रुओं का अंत निश्चित हो जाता है। आप असुरों और दुष्टों के लिए कालस्वरूप हैं, किन्तु अपने शरणागत भक्तों के प्रति करुणामूर्ति हैं। हे प्रभु! बार-बार आपसे निवेदन है—प्रसन्न हो जाइए, कृपा कीजिए। आप शरणागतों पर दया करने वाले, उनकी पीड़ा दूर करने वाले और उन्हें निर्भय बनाने वाले हैं। मैं आपके चरणों का शरणागत हूँ, कृपया अपनी अनुकम्पा की वर्षा कर मेरे जीवन को पावन कीजिए। इस श्लोक में भक्त का भाव अत्यंत विनम्र है, जहाँ वह बार-बार केवल प्रभु की करुणा और कृपा की याचना करता है।
Shower your grace, shower your grace, You who have great fame, Shower your grace, shower your grace, he who is death to his enemies, Shower your grace, shower your grace, Who is compassionate to those who surrender to him, Shower your grace, shower your grace, Prabhu Ramachandra.
भुजङ्गप्रयातं परं वेदसारंमुदा रामचन्द्रस्य भक्त्या च नित्यम् । पठन्सन्ततं चिन्तयन्स्वान्तरङ्गेस एव स्वयं रामचन्द्रः स धन्यः ॥ 29 ॥
यह राम-भुजंग स्तोत्र परम पवित्र और वेदों का सार है। जो साधक आनंदपूर्वक, श्रद्धा और भक्ति से इसे नित्य पढ़ता है और निरंतर अपने हृदय में भगवान श्रीराम का चिंतन करता है, वह वास्तव में धन्य है। ऐसे साधक के अंतःकरण में स्वयं प्रभु रामचन्द्र निवास करने लगते हैं। इस श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि यह स्तोत्र केवल काव्य नहीं है, बल्कि प्रभु के स्मरण और आत्मानुभूति का माध्यम है। इसका नियमित पाठ करने से भक्त को प्रभु की कृपा सहज ही प्राप्त होती है और उसका जीवन पवित्र एवं सफल बन जाता है।
He who reads or always thinks about in his mind, this Bhujanga prayer of Lord Ramachandra which is the summary of Vedas, daily, Will attain Ramachandra and always be blessed.
Rama Rama Rama
